दशरथ मांझी, जिन्हें आज "माउंटेन मैन" के नाम से जाना जाता है, एक ऐसे व्यक्ति थे, जिसने साबित कर दिया कि कुछ भी हासिल करना असंभव नहीं है।
पूरी रियल स्टोरी पढ़ने के बाद जरूर बताये की दशरथ मांझी की बायोग्राफी कैसी लगी ?
उनका जीवन हमें शिक्षा देता है कि एक छोटा आदमी, जिसके पास न पैसा है और न ताकत है, वह एक शक्तिशाली पहाड़ को भी चुनौती दे सकता है।
उनका विशाल पर्वत को तोड़ने का दृढ़ संकल्प एक मजबूत संदेश देता है कि अगर कोई अपने लक्ष्य पर मजबूती से टिका रखता है तो हर बाधा को पार किया जा सकता है।
उनकी 22 साल की कड़ी मेहनत सफल हुई, क्योंकि उनके द्वारा बनाई गई सड़क अब ग्रामीणों द्वारा उपयोग की जाती है।
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कौन है दशरथ मांझी ?
पत्नि का नाम : फाल्गुनी देवी
बेटा : भगीरथ मांझी
उनके प्यार की कहानी
1956 में, बिहार में गया जिले के पास गहलौर गांव के मूल निवासी मांझी की बचपन में ही शादी कर दी गई थी।
बचपन में ही वो एक कोयला खदान में काम करने चले गए थे, वहा लगातार 7 साल काम करते रहे तो उनकी शादी भी टूट गयी थी।
क्युकी बचपन के हुई शादी की वजह से उन्हें लड़की के बारे में कुछ भी पता नहीं था।
लेकिन जब वह धनबाद की कोयला खदानों में सात साल तक काम करने के बाद अपने गाँव लौटा, तो उसे गाँव की एक लड़की फाल्गुनी देवी से प्यार हो गया।
लेकिन वो भी आश्चर्य हो गए जब उन्हें पता चला की, वह लड़की उनकी बचपन की दुल्हन निकली।
लेकिन उसके पिता ने दशरथ के साथ फाल्गुनी देवी को भेजने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह बेरोजगार थे।
लेकिन दशरथ फाल्गुनी को अपने जीवन में वापस लाने के लिए अटूट थे इसलिए दोनों भाग गए और वे पति-पत्नी के रूप में रहने लगे।
कुछ समय बाद फाल्गुनी ने एक बच्चे को जन्म दिया और देखते ही देखते 1960 में वह फिर से गर्भवती हो गई।
गहलौर एक सुदूर और पिछड़ा गाँव है, जहाँ जाति व्यवस्था प्रचलित है। पिछड़ी जातियों के लोगों के साथ गांव के मुखिया (नेता) द्वारा दुर्व्यवहार किया जाता था।
गांव के शक्तिशाली लोग महिलाओं को एक मात्र वस्तु के रूप में मानते थे। 'विकास' शब्द उनके लिए पराया शब्द लगता था।
दलितों को गांव के मुखिया की आंखों में देखने तक की इजाजत नहीं थी। ऐसी हिम्मत करने पर उन्हें बेरहमी से पीटा जाता है।
गरीब ग्रामीणों को अपनी दैनिक जरूरतों और परिवहन संपर्क के लिए गया जिले के अटारी और वजीरगंज ब्लॉक के बीच स्थित एक विशाल पहाड़ को पार करने के लिए एक संकीर्ण और खतरनाक रास्ते से होकर गुजरना पड़ता था।
पहाड़ काटने का कारण
एक घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी, एक दिन उनकी पत्नी फाल्गुनी जो गर्भवती थी, अपने पति के लिए दोपहर का भोजन लेकर खेतों में जा रही थी, जिसके लिए उसे भीषण गर्मी में पहाड़ पर चढ़ना था।
दुर्भाग्य से, फाल्गुनी का पैर फिसल गया और वह पहाड़ से नीचे गिर गई, जबकि भूखा दशरथ भोजन की प्रतीक्षा कर रहा था।
तभी गांव के किसी व्यक्ति ने दशरथ को खबर दी कि उसकी पत्नी पहाड़ से गिर गई है।
दशरथ घबरा गए और अपनी खून से लथपथ पत्नी को 70 किलोमीटर दूर निकटतम अस्पताल में ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया, लेकिन उसने एक बच्ची को जन्म दिया।
दशरथ मांझी के पहाड़ तोड़ने की कहानी
1960 बदला लेने की कहानी शुरू हुई अपनी पत्नी को दुनिया की किसी भी चीज़ से ज्यादा प्यार करने वाले मांझी ने उस विशाल पहाड़ को कोसना शुरू कर दिया और उसके अहंकार को तोड़ने के लिए उसे नीचे लाने की कसम खाई।
अपनी प्यारी पत्नी की याद में, दृढ़ संकल्प मांझी ने एक हथौड़ा और एक छेनी ली और एक कठिन और लगभग असंभव मिशन पर निकल पड़े।
उसने एक रास्ता बनाने का फैसला किया, ताकि कोई दूसरा व्यक्ति उनकी तरह पीड़ित न हो।
एक विशाल पर्वत को चुनौती देने के लिए ग्रामीणों और यहां तक कि उसके पिता ने भी उसका मजाक उड़ाया। लेकिन मांझी अपने दृढ़ निर्णय पर अड़े रहे।
एक स्थानीय पत्रकार का इस चीज़ पे ध्यान गया और उनसे संपर्क किया कि वह पहाड़ काटने पर क्यों तुले हुए हैं?
वर्षों बीत गए, उस दौरान गहलौर भीषण सूखे की चपेट में आ गया और ग्रामीणों ने गांव खाली कर दिया।
दशरथ के पिता ने उन्हें ताना मारा कि इतने सालों में उन्होंने क्या हासिल किया? उसने दशरथ को उनके साथ एक शहर जाने के लिए मनाने की कोशिश की, जहाँ वह अपने दो बच्चों के लिए रोटी कमा सके।
लेकिन, दशरथ ने अपने कठिन कार्य को जारी रखने का फैसला किया। पानी और भोजन नहीं होने के कारण, दशरथ को गंदा पानी पीने और पत्ते खाने के लिए भी मजबूर होना पड़ा था।
1975 में सूखे का आपातकाल
1975 में, इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा घोषित आपातकाल के कारण देश अंधेरे में डूब गया, इसी दौरान वह एक रैली को संबोधित करने बिहार गई थीं, जहां दशरथ भी पहुंचे।
जिस मंच पर इंदिरा एक भीड़-भाड़ वाली रैली को संबोधित कर रही थीं, वह गिरने वाली थी।
शीघ्र ही मांझी, अन्य ग्रामीणों के साथ, गिरते हुए मंच को अपने कंधो पर उठा लिया, ताकि इंदिरा गाँधी अपना भाषण जारी रख सकें।
जब रैली खत्म हुई तो मांझी किसी तरह इंदिरा गांधी के साथ फोटो खिंचवाने में कामयाब रहे।
लालची मुखिया ने सोचा कि अब दशरथ को पीएम के सामने कम ही जाना जाता है।
इसलिए गिरगिट की तरह उसने दशरथ को फुसलाया कि अगर वह खाली पेपर पे अपना अंगूठा दे देता है, तो वे सड़क निर्माण के लिए सरकार से धन प्राप्त कर सकेंगे पहाड़ को तोड़कर रास्ते के लिए।
लेकिन दशरथ को उनकी आदत का पता पूरा पैसा हड़पना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मना कर दिया और उन्होंने पीएम से मुखिया के खिलाफ शिकायत करने का फैसला किया।
दिल्ली पैदल यात्रा
दशरथ बिहार से दिल्ली पैदल चल पड़े दशरथ के पास दिल्ली जाने के लिए ट्रेन का टिकट खरीदने के लिए 20 रुपये भी नहीं थे।
इसलिए वो बिना टिकट के ही ट्रैन में बेठ गए कुछ दुरी पे जब टिकट चैक किया और उनके पास टिकट नहीं था तो टीटी ने ट्रेन से निचे उतार दिया।
लेकिन कोई भी अड़चन उसे उसकी मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकी। इसलिए, वो पैदल ही राजधानी दिल्ली तक पहुँचने के पैदल ही चल पड़े।
उस समय दिल्ली में आपातकाल की वजह से विरोध प्रदर्शनों से दिल्ली घिर गई थी।
दशरथ इंदिरा गांधी के साथ अपनी तस्वीर लेकर एक पुलिश अधिकारी को बताया और बोले की वो उनसे मिलना चाहते है,
तो उन्हें पुलिस अधिकारी ने वहा से दूर कर दिया, और न केवल उनका मजाक उड़ाया, बल्कि तस्वीर को फाड़ दिया और राजपथ पर लाठीचार्ज किया गया इसलिए किसी को भी मिलने का मौका नहीं दिया गया और सबको भगा दिया गया था।
दिल्ली से बिहार वापसी
अपमानित होकर दशरथ पर्वत को काटने के लिए वापस लौटे लेकिन दशरथ की बढ़ती उम्र के कारण उन्हें लगा कि वह असफल हो गए हैं और उनके प्रयासों का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला है।
लेकिन उनको उम्मीद तब जगी जब कुछ ग्रामीण दशरथ के साथ पथ बनाने के उनके कठिन कार्य में शामिल हो गए।
लेकिन, वो भी कुछ स्थानीय अधिकारियों द्वारा रोक दिया, जिन्होंने दशरथ और ग्रामीणों को पहाड़ के आसपास मौजूद नहीं होने की चेतावनी भी दी।
लेकिन दशरत टिके रहे तो उन्होंने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया। लेकिन, पत्रकार उनके लिए मसीहा प्रतीत हुए और दशरथ को रिहा कराने के लिए उस पुलिस स्टेशन के सामने विरोध दर्ज कराया।
आख़िरकार मांझी के लगातार प्रयासों से उन्होंने अकेले ही पहाड़ के बिच एक 360 फीट लंबा, 30 फीट ऊंचा और 30 फीट चौड़ा मार्ग बना डाला।
उन्होंने 55 किलोमीटर की दूरी को 15 किलोमीटर छोटा करके ग्रामीणों के जीवन में बदलाव किया।
आखिरकार 1982 में मांझी के 22 साल के परिश्रम और श्रम ने एक नई सुबह ला दी, जब सरकार ने पहाड़ को तोड़ कर सड़क बनाने का काम शुरू किया।
पद्म श्री पुरस्कार
2006 में, उनका नाम समाज सेवा क्षेत्र में पद्म श्री पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया गया था।
दशरथ मांझी की मृत्यु
17 अगस्त, 2007 को, मांझी का 73 वर्ष की आयु में पित्ताशय के कैंसर के कारण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया।
Statue of Dashrath Manjhi
बिहार सरकार ने उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया था एवं उनका स्टेचू भी बनाया गया।
मरने से पहले, मांझी ने एक समझौते पर अपने अंगूठे का निशान दिया था और अपने जीवन पर एक बायोपिक बनाने के लिए "अनन्य अधिकार" दिए थे।
दशरथ मांझी पथ
2011: सरकार ने आधिकारिक तौर पर सड़क का नाम "दशरथ मांझी पथ" रखा। मांझी के अदम्य जज्बे को सलाम।
उनके प्रयासों की मान्यता में, उनके बेटे और बहू, भगीरथ मांझी और बसंती देवी को सत्यमेव जयते में आमंत्रित किया गया था जहां आमिर खान ने इस नायक को अपना पहला एपिसोड समर्पित किया था।
हमारे जैसे विशाल देश में उचित चिकित्सा देखभाल की कमी एक बड़ी समस्या है, और अब समय आ गया है कि हम इस पर ध्यान दें।
Manjhi - The Mountain Man movie 2015
2015 में उनके जीवन पे एक फिल्म भी बनाई गयी थी: Manjhi - The Mountain Man जिसमे Nawazuddin Siddiqui एवं Radhika Apte मुख्या किरदार में थे।