अरुणिमा सिन्हा का जीवन परिचय | Arunima Sinha biography in Hindi

अरुणिमा सिन्हा बायो/विकी, जन्म, उम्र, परिवार एंड कहानी (Arunima sinha Bio/wiki, Birthday, age, family and full story)

आज हम आपको अरुणिमा सिन्हा की स्टोरी (Story of Arunima Sinha) बतायेंगे। एक ऐसी स्टोरी जिसे शायद आप नही जानते होंगे।

कैसे अपना एक पैर कटने के बाद भी उन्होंने माउंट ऐवरेस्ट की चढाई करके कीर्तिमान बना दिया?

अरुणिमा सिन्हा बायो/विकी (Arunima Sinha biography)

कौन है अरुणिमा सिन्हा ? (Who is Arunima Sinha?)

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 1988 में उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर में हुआ था। 

अरुणिमा सिन्हा (Arunima sinha) जिन्हें चलती ट्रेन से लुटेरों ने बाहर फेंक दिया था जिसके कारण ट्रेन से उनका एक पैर कट चुका है फिर भी अपने पहाड़ों से मजबूत हौसलों से अरुणिमा सिन्हा दुनिया की पहली विकलांग महिला बनी है।

जिसने माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर विश्व कीर्तिमान बनाया है, और अपनी विकलांगता को अपने मजबूत हौसलों के आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया हैं ।

अरुणिमा सिंह की जीवन की प्रेरणादायक कहानी (Her inspirational story)

वह एक लंबी कद काठी की स्वस्थ लड़की थी, जिसे वॉलीबॉल खेलना बहुत पसंद था।

अपना और अपने देश का नाम रोशन करने का सपना उन्होंने वॉलीबॉल में देखा था अरुणिमा सिन्हा नेशनल वॉलीबॉल खिलाडी थी।

उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से सीआईएसएफ के एग्जाम और फिजिकल टेस्ट पास कर लिया था जिसकी जॉइनिंग के लिए उन्हें दिल्ली जाना था वह लखनऊ से दिल्ली जाने वाली पद्मावती एक्सप्रेस में दिल्ली जाने के लिए बैठ गई।

अरुणिमा सिन्हा का ट्रेन एक्सीडेंट (Arunima Sinha train accident)

जब वो ट्रेन में सफर कर रही थी उसी समय चलती ट्रेन में बीच रास्ते में कुछ लुटेरों ने अरुणिमा की सोने की चेन खींचने का प्रयास किया। 

लेकिन अरुणिमा ने इसका जमकर विरोध किया और उन्हें ऐसा नहीं करने दिया अपने मंसूबों पर कामयाबी ना मिलने पर उन लुटेरों ने मिलकर अरुणिमा को चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया । बदकिस्मती से साइड ट्रैक में दूसरी दिसा से एक ओर ट्रेन आ रही थी ।

अरुणिमा ने बताया : गिरने के बाद मैंने उठने की कोशिश की लेकिन ट्रेन इतनी तेजी से गुजरी कि मेरे एक पैर से ट्रेन गुजर गई उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ याद नहीं।

उनका पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया और वह अपना बाया पैर खो चुकी थी।

4 महीने तक उनका दिल्ली एम्स में इलाज चला। उन्हें खेल मंत्रालय से कंपनसेशन के रूप में ₹25,000 देने का ऑफर किया गया, जो की बाद में इसे बढ़ाकर ₹2,00,000 कर दिया गया।

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इसके बाद रेलवे ने उन्हें नौकरी ऑफर की लेकिन उन्होंने वह नौकरी नहीं की। इस हादसे ने उन्हें लोगों की नजरों में असहाय बना दिया था।  

लेकिन वह खुद को असहाय नहीं देखना चाहती थी लोगों की सहानुभूति उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं थी वह कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिससे फिर से वह अपनी कॉन्फिडेंस भरी लाइफ जी सके।

इलाज के बाद अरुणिमा को एक आर्टिफिशियल पैर लगाया गया, जिससे वह दोबारा पहले जैसी ना सही लेकिन चलने फिरने लगी।

जब अरुणिमा सिन्हा ने अपने साथ हुई घटना की रिपोर्ट गवर्नमेंट रेलवे पुलिस स्टेशन में बताई, तो पुलिस ने अरुणिमा के बयानों को सही नहीं माना और कहा कि वह सुसाइड के ईरादे से ट्रेन से कूदी थी । 

इसके बाद अरुणिमा सिन्हा ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अरुणिमा सिन्हा को सही ठहराते हुए रेलवे को ₹50,0000 का मुआवजा देने का आदेश दिया।

Arunima Mount Everest Climb

इसके बाद वह भारत की माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला बछेंद्री पाल से मिलने गई और बचेंद्री पाल ने अरुणिमा को पर्वतारोहण की ट्रेनिंग दी, कई मुसीबतें आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और ट्रेनिंग खत्म होने के बाद उन्होंने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी कर ली।

52 दिनों की कठिन जानलेवा चढ़ाई के बाद आखिरकार उन्होंने 21 मई 2013 को माउंट एवरेस्ट फतह करने के साथ ही विश्व की पहली विकलांग महिला बन गई।

हवाओं से कह दो कि अपनी हद में रहे हम पैरों से नहीं, हौसलों से उड़ान भरते हैं।-अरुणिमा सिन्हा 

Arunima Sinha quote

एवरेस्ट पर चढ़ना निश्चित रूप से जितना मैंने सोचा था उससे अधिक कठिन था, लेकिन यह साबित करने की मेरी इच्छाशक्ति कि एक आदिवासी लड़की कुछ कर सकती है, मुझे हौसला देती रही ओर मै ऐवरेस्ट फतह कर गई।

Achievement of Arunima Sinha (उनकी उपलब्धियां)

एवरेस्ट फतह करने के बाद भी वो रुकी नहीं, उन्होंने विश्व की सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फतह करने का लक्ष्य रखा है। जिनमें से कुछ पर तो वह तिरंगा फहरा चुकी है ।

2015 में अरुणिमा को भारत की चौथा सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से नवाजा गया है और उत्तर प्रदेश सरकार ने ₹2,50,0000 चेक के रूप में उन्हें दिए हैं।

Her Qualities that inspire you?

वह अपने इस महान प्रयासों के साथ विकलांग बच्चों के लिए शहीद चंद्रशेखर आजाद खेल एकेडमी भी चलाती हैं। 

उस भयानक हादसे ने अरुणिमा की जिंदगी बदल दी वह चाहती तो हार मानकर असहाय जिंदगी जी सकती थी, लेकिन उनके हौसलों और प्रयासों ने उन्हें फिर से एक नई जिंदगी दे दी।

आज सिन्हा जैसे लोग भारत की शान है और यही वह लोग हैं, जो नए भारत का निर्माण करने में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। 

आप भी उनके फाउंडेशन शहीद चंद्रशेखर आजाद खेल एकेडमी को सपोर्ट कर सकते हैं।

Yuvraaj Singh is her inspiration

युवराज सिंह की जिंदगी से प्रेरित होकर अरुणिमा ने अपनी जिंदगी बदल दी और अब अरुणिमा सिन्हा की कहानी हजारों लोगों की जिंदगी बदल रही है।

Conclusion:

जिंदगी में कुछ भी हो जाए कभी हार नही माननी चाहिये, हमेशा जिंदगी में कुछ न कुछ करना चाहिए, जिंदगी में अगर कही भी मौका ना भी मिले तो बनाना चाहिये।

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