विश्वनाथन आनंद [Viswanathan Anand], जिन्हें शतरंज की दुनिया में भारत का गौरव कहा जाता है, पाँच बार के वर्ल्ड चेस चैम्पियन और भारत के पहले ग्रैंडमास्टर हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं, उनकी इस सफलता के पीछे उनकी माँ सुशीला आनंद का अहम योगदान है?
यह लेख उनके शुरुआती जीवन, माँ की सीख, और शतरंज में उनकी ऐतिहासिक उपलब्धियों की प्रेरक कहानी को उजागर करता है।
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परिचय
विश्वनाथन आनंद, जिन्हें शतरंज की दुनिया में 'लाइटनिंग किड' कहा जाता है, इतिहास के सबसे महान शतरंज खिलाड़ियों में से एक हैं।
पाँच बार वर्ल्ड चेस चैम्पियनशिप जीतने वाले आनंद की सफलता के पीछे उनकी माँ सुशीला आनंद की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनकी प्रेरणादायक कहानी हर माता-पिता और युवा के लिए सीख है।
बचपन और परिवार
11 दिसंबर 1969 को तमिलनाडु के माइलादुत्रयी में जन्मे विश्वनाथन आनंद के पिता, विश्वनाथन अय्यर, रेलवे में मैनेजर थे, और माँ सुशीला आनंद एक गृहिणी थीं।
शतरंज से गहरा लगाव रखने वाली सुशीला ने आनंद को मात्र छह साल की उम्र में इस खेल की बुनियादी चालें सिखानी शुरू कर दीं।
उनकी यह सीख जल्द ही रंग लाई, और आनंद ने 14 साल की उम्र में "नेशनल सब-जूनियर चेस चैम्पियनशिप" जीत ली।
एक साल बाद, उन्होंने "जूनियर एशियन चैम्पियनशिप" में जीत दर्ज की और सबसे कम उम्र में इंटरनेशनल मास्टर का खिताब पाने वाले भारतीय बने।
करियर की बुलंदियां
17 साल की उम्र में आनंद ने "एफआईडीई जूनियर वर्ल्ड चेस चैम्पियनशिप" जीती और यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले एशियाई बने। 1988 में, वह भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने।
उनकी करियर की कुछ प्रमुख उपलब्धियां:
- 2000 में पहली बार "वर्ल्ड चेस चैम्पियनशिप" जीतकर इतिहास रचा।
- 2007 से 2012 तक लगातार चार बार विश्व चैंपियन बने।
- 2008 में ब्लादिमीर क्रैमनिक को हराकर तीन अलग-अलग फॉर्मेट (नॉकआउट, टूर्नामेंट, और मैच) में जीतने वाले पहले खिलाड़ी बने।
माँ की सीख और प्रेरणा
सुशीला आनंद ने अपने बेटे को शतरंज के प्रति अनुशासन और समर्पण सिखाया। वह उन्हें चेन्नई के शतरंज क्लबों में लेकर जाती थीं और हमेशा जीत-हार को सहजता से लेने की सीख देती थीं।
उनका मानना था कि शतरंज केवल दिमागी खेल नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक संतुलन का प्रतीक है। उन्होंने आनंद को हर परिस्थिति में तैयार किया।
माँ सुशीला का संदेश:
"हर कोई सचिन तेंदुलकर नहीं हो सकता। हर बच्चे का अपना अलग रास्ता होता है। माता-पिता का काम है उनकी राह को समझना और समर्थन करना।"
भारतीय खेलों में शतरंज का योगदान
उस दौर में जब क्रिकेट भारत का प्रमुख खेल था, आनंद ने शतरंज जैसे अपरंपरागत खेल को चुना। उनकी उपलब्धियों ने इस खेल को भारत में नई पहचान दी।
आनंद को पद्मश्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, अर्जुन पुरस्कार, और राजीव गांधी खेल रत्न जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
माँ की विरासत
2015 में 79 वर्ष की आयु में सुशीला आनंद ने दुनिया को अलविदा कहा। उनकी शिक्षाओं और समर्थन ने विश्वनाथन आनंद को न केवल एक महान खिलाड़ी बनाया, बल्कि एक आदर्श व्यक्तित्व भी।
निष्कर्ष
विश्वनाथन आनंद की सफलता केवल उनकी प्रतिभा का परिणाम नहीं, बल्कि उनके माता-पिता, विशेषकर उनकी माँ सुशीला आनंद के समर्पण का प्रमाण है।
उनकी कहानी हर माता-पिता के लिए प्रेरणा है कि बच्चों को उनके जुनून को अपनाने का अवसर दें।
"शतरंज के इस महानायक और उनकी माँ को हमारा नमन।"
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